मां ललिता देवी मंदिर | नैमिषारण्य


शक्तिपीठ मां ललिता देवी मंदिर 




नैमिषारण्य स्थित, मां ललिता देवी मंदिर। 51 शक्तिपीठो में यह स्थान इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मां का हृदय यहीं गिरा था। इसीलिए इस स्थान पर पुजारी आपसे कहते हैं कि मांगो जो मांगना है।
यहां कामनाएं पूरी होती हैं।


दरबार तेरा दरबारों में
एक खास अहमियत रखता है,
उसको वैसा मिल जाता है,
जो जैसी नीयत रखता है,,

सीतापुर. नवरात्रि के शुरू होते ही मां दुर्गा सहित तमाम देवियों के दिव्य और शक्तिपीठ स्थलों का ध्यान भक्तों के अर्न्तमन में प्रमुखता से आता है और इसलिये हम एक शक्तिपीठ का ही वर्णन करने जा रहे हैं। जी हां, देवी मां के 108 शक्तिपीठों में से एक सीतापुर नैमीषारण्य में स्थित मां ललिता देवी का भी विशाल मंदिर है और इस मंदिर में लोगों की आस्था का अंदाजा समूचे वर्ष भक्तों की लगने वाली अपार भीड़ को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है।

दरअसल नैमिषारण्य में एक समय दक्ष प्रजापति के आने पर सभी स्वागत करने के लिये उठे, लेकिन भगवान शंकर जो कि वहां मौजूद होने के बावजूद नहीं उठे। इसी अपमान का बदला लेने के लिये दक्ष ने अपने यज्ञ में शिवजी को आमंत्रित नही किया। जिसकी जानकारी जब मां सती को लगी तो बिना भगवान शंकर की अनुमति के मां सती अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंची। उस दौरान सम्पन्न हो रहे यज्ञ समारोह में अपने
पिता के द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनकर एवं खुद अपमानित होकर मां सती ने अपने प्राणों को त्याग कर दिया। जिसकी जानकारी भगवान शंकर को लगते ही वह मां सती के प्रेम में विरहातुर होकर उन्होनें मां सती के शव को कंधे पर रखकर इधर उधर उन्मत भाव से घूमना शुरू कर दिया। भगवान शंकर की इस स्थिति से विश्व की सम्पूर्ण व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गयी।

ऐसे में विवश होकर भगवान विष्णु ने अपने धनुष बाण से मां सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इसके बाद जहां भी मां सती के शव के अंग प्रत्यंग गिरे एक एक शक्ति विभिन्न प्रकार की आकृतियां से युक्त होकर उन स्थानों पर विराजमान हुयी और वह वह स्थान आज प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल स्थापित हो गये। तंत्र चूणामणि के आधार पर महादेव भी उन स्थानों पर भैरव के विभिन्न रूपों में स्थित हुये।

पुराणों और शास्त्रों की मानें तो नैमिषारण्य में मां सती का ह्दय गिरा था। देवी भागवत के आधार पर नैमिष एक लिंगधारिणी करके शक्तिपीठ स्थल भी है। यहां लिंग स्वरूप में ही भगवान शिव का पूजन अर्चन भी होता है। नैमिषीय मां ललिता देवी मंदिर के द्वार पर ही प्रयाग (पंचप्रयाग) तीर्थ विद्यमान है। इसलिये भी लिंगधारिणी के ऊपर नाम में ललिता नाम प्रचलित है। पूर्व प्रकाशित महात्माओं से ऐसा भी लेख मिलता है कि चक्र की शक्ति को रोकने के लिये भी ललिता शक्ति का प्राकट्य हुआ।

यहां का विशेष चढ़ावा

सीतापुर जनपद की सीमा से 35 किलोमीटर दूर नैमिषारण्य के मां ललिता देवी मंदिर के विशेष चढ़ावे सोने और चांदी के छत्र होते हैं। माना जाता है मां को छत्र चढ़ाने से मनोकामना जरूर पूरी होती है।

     माता रानी सब पर कृपा करें।जय माता दी |